‘स्थापत्यम्’ वास्तुशास्त्र को शास्त्रीय विधि से समझाने वाली पत्रिका है। इसका पहला अंक प्रमाण माना जा सकता है। रूप-रंग और आकार-प्रकार में यह अपने विषय की पत्रिकाओं से भिन्न और श्रेष्ठ है। इसके लेख शोधपरक हैं। उदाहरण के लिए पत्रिका के सम्पादक रामेन्द्र पाण्डेय के ‘पाटलिपुत्र’ लेख का उल्लेख उचित होगा। यह लेख पाटलिपुत्र के २६०० साल पुराने इतिहास को वास्तुशास्त्र के दृष्टिकोण से समझाता है। इसे पढ़ने पर वास्तुशास्त्र की व्यापकता और उसकी परिधि का बोध होता है। इससे एक वास्तुशास्त्रीय सिद्धान्त निकलता है। जिसमें वास्तुशास्त्र का नया रूप सामने आता है। वह अवधारणा टूटती है जो इसके बारे में बन गई है।
पत्रिका को पढऩे और समझने के लिए जरूरी है कि एक नई दृष्टि हो। इतिहास और अपने साहित्य की समझ हो। जिसमें संस्कृत साहित्य बहुत सहायक हो सकता है। हर पत्रिका अपना पाठक बनाती है या उस पाठक को समर्पित होती है जिसकी सामग्री में रुचि हो। यह पत्रिका अपने विषय के शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों के लिए भी बहुत उपयोगी होगी।
‘स्थापत्यम्’ के बारे में रामेन्द्र पाण्डेय काफी दिनों से विचार करते रहे हैं। वह अब अपने पहले अंक से साकार रूप में हमारे सामने है। पहला अंक अपने आप में एक पुस्तक है। आशा करें, अगले अंकों में सामान्य पाठक के लिए भी एक कोना रहेगा।